Secretary's Message

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“नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते”

श्रीमद्भगवद्गीता के इस श्लोक का अर्थ है कि “ज्ञान के समान पवित्र इस संसार में कोई वस्तु नहीं है।” लेकिन साधारण सा प्रतीत होने वाले इस कथन में ज्ञान की जिस व्यापकता का वर्णन भगवान ने किया था, वह आज हमारी भौतिकतावादी जीवन शैली के कारण हमारे जीवन विधियों से अलग हो चुका है। आज आवश्यकता इस बात की है कि ज्ञान के उसी आध्यात्मिक स्वरूप का रोपण युवा छात्र-छात्राओं में किया जाए।

श्रीमद्भगवद्गीता के इस श्लोक में, भगवान कृष्ण कहते हैं कि ज्ञान ही इस संसार में सबसे पवित्र चीज है। ज्ञान हमें आत्म-ज्ञान प्राप्त करने, जीवन का उद्देश्य समझने, और एक बेहतर इंसान बनने में मदद करता है। लेकिन आज, हमारी भौतिकतावादी जीवन शैली के कारण, हम अक्सर ज्ञान के आध्यात्मिक महत्व को भूल जाते हैं।

आज, हमारे युवाओं को ज्ञान के उसी आध्यात्मिक स्वरूप की आवश्यकता है जो उन्हें अपने जीवन में सच्ची खुशी और पूर्णता प्राप्त करने में मदद कर सके। राजेन्द्र प्रसाद ताराचन्द पी.जी. कॉलेज इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। कॉलेज का लक्ष्य युवाओं को एक ऐसा ज्ञान प्रदान करना है जो उन्हें एक बेहतर इंसान और एक बेहतर समाज बनाने में मदद करे।

“नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते”

“प्राचीन भारत में गुरु परंपरा द्वारा अपने आचरण के द्वारा गुरुकुलों के रूप में शिक्षा दी जाती थी । गुरुकुल, आचार्य / आचार्या, छात्रावास के योगक्षेम (खर्च) की निःशुल्क व्यवस्था समाज द्वारा समर्पित दक्षिण से होती थी । एकात्मा/समरसता/समानता/सेवा/त्याग/समर्पण के आधार पर सभी विधाओं में चल रही शिक्षा का लक्ष्य नर से नारायण बनाने का था । वर्तमान भारत में मैकाले की शिक्षा हमें निस्तेज/आत्मविस्मृत कर हमें मानसिक गुलामी में जकड़ दिया है । मानव मशीन के रूप में परिवर्तित होता जा रहा है और समाज में अमानवीय, अनैतिक,असंवेदनशील जीवन मूल्य स्थापित होते जा रहे हैं ।

उक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रारंभ से ही अनेकों वर्षों तक व्यवस्थापक रहीं श्रीमती राजपति देवी प्रमुख निचलौल ने संस्कार-दायिनी, जीवन-मूल्य दायिनी, ज्ञान-कौशल दायिनी, रोजगार-दायिनी, उच्च-शिक्षा के इस केंद्र को ग्रामीण अंचल में स्थापित किया है और मैं एवं मेरे जीवन साथी गत आठ वर्षों से इस केंद्र के माध्यम से जनसेवा के पुनीत कार्य में लगे हैं  तथा मैं के दायरे को छोटा करने तथा हम के दायरे को बड़ा करने में (मैं-मेरा-कुटुंब,गाँव-जनपद-राज्य-देश-विश्व-पशु-पक्षी,चर-चराचर) की स्वस्थ्य प्रक्रिया में मेरे शिक्षक, कर्मचारी उत्प्रेरक बनें । इस आशा और अपेक्षा के साथ परम पिता परमेश्वर से प्रर्थना है कि जितना हमे प्राप्त हुआ है उससे अधिक हम समाज को लौटा सकें ।

“ईशावास्यमिदं सर्वम् यत्किंच जगत्यां जगत् तेन त्यक्तेन भुन्जीयाः मा गृथः कस्यस्विद धनम् ” ।।
परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि जितना हमें प्राप्त हुआ है उससे अधिक हम समाज को वापस लौटा सकें।
“जीवने यावदादानं स्वात् प्रदानं ततोडऽविधकम्, इत्येषा प्रार्थनास्माकं भवनम् परिपूर्यताम् ” ।|

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